8-वैसाख,वर्षा और बसंत / बसंत कुमार साहू
8-वैसाख,वर्षा और बसंत
- बसंत कुमार साहू
बैसाख के प्रचंड तेज से
आकाश जल रहा है
पृथिवी जल रही है
मगर नहीं जल रही है !
टूटी दीवार की छाया
में सोए हुए
छोटे बच्चे का शरीर
और पास ही ईंट ढोती
उसकी माता का
मातृत्व ।
वर्षा की प्रबल धारा
में
आकाश गीला हो रहा है
पृथिवी गीली हो रही
है लेकिन नहीं गीला हो रहा है
दोनों हाथ छाती से
चिपकाकर मेड पर बैठे
बच्चे का नग्न-शरीर
और पास क्यारी में
धान रोपती
उसकी माता की ममता ।
बसंत के स्निग्ध
समीर में
आकाश हँस रहा है
पृथिवी हँस रही है
किन्तु नहीं हँस रहा है
आधे पेट में माता के पास
सोने का प्रयास करता
बेटा
और टूटी कुटिया में
रात के अंतिम प्रहार में
शराबी पति का राह
देख रही
उसकी माता का नारीत्व ।
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