6-दामिनी / निकिता सुमन


6-दामिनी
-निकिता सुमन  
  टूट गई स्वप्न-समाधि
किसी एक अशुभ घड़ी में
बुझ गई पूनम के चाँद की मुस्कराहट
समय के कराल गर्भ में
जीवन के नशा को लूटकर
नर-पिशाच की क्षुधा
पूर्ति होने तक लड़ते-लड़ते
हार गया जीवन के युद्ध में ।
ओ दामिनी !
हारकर भी जीत गए ये जीवन के युद्ध में
मरकर भी अमर इस सारे संसार में
चेता कर इस सारे संसार को
समाज को, व्यक्ति चेतना को
दामिनी की आँसू,कोह,असमाप्त-यंत्रणा
नहीं जाएगी कभी भी बेकार
जिंदा रहेगी कोटि-कोटि हृदय में
अग्नि की शिखा बनकर जलती रहेगी विप्लव की आग
नग्न,व्यभिचार,नशा,नग्नता
काम,क्रोध और व्यभिचार के विरोध में ।



Comments

Popular posts from this blog

49॰ अग्नि-कन्या / शुभश्री मिश्रा

47 – भूत-बीमारी / मूल:- महेश्वर साहु

48 – अनावृत्त-अंधकार / मूल :- निबासीनि साहु