4. हम कवि,कवयित्री / ब्रह्मा शंकर मिश्रा


5. हम कवि,कवयित्री
ब्रह्मा शंकर मिश्रा
आओ हम सभी
कवि कवयित्री मने पकाअ सभा में
चिंतन करे
हमारा सृजन कैसे पहुंचे कोने-कोने में ।
किसान हल जोतते
कृषिकर्म करते अपनी जमीन पर
लिखता है कविता
बैलों का हांकते समय वह भी गुनगुनाता है ।
ब्राह्मणी नदी के किनारे
नावों को नदी के बीच खेते समय
केवट के कंठ की मधुर तान
क्या तुम्हारे कविता की पंक्ति बनती है ?
पहुंचों,पहुंचों कवि
जहां तक पहुंच न सका आज तक रवि ।
लिखो ऐसा खोलकर
अपने मन के द्वार कि
सभी के मन के नजदीक हो जाए ।
आत्मा में आत्मीय भाव
घर्घर नाद से घोषित अत्यंत मार्मिक
तुम्हारे काव्य की हो ऐसी कविता
कि मुकं करोति वाचालं
पंगु लंघयते गिरीं ।

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