43 – अन्ना हो, हमारे गांव आओ / मूल :- गुणनिधी सामल


43 – अन्ना हो, हमारे गांव आओ
मूल :- गुणनिधी सामल
अन्ना हो, हमारे गांव आओ
अपनी आंखों से देख जाओ
हमारे गांव का रूप , अन्ना हो ।
प्रधान मंत्री ग्राम सड़क
हमारे गांव का रास्ता
गेती-बालू का ढेर
सीमेंट का एक बस्ता
दो महीने में गांव का रास्ता
कितना फटा, अन्ना हो ।
हमारे गांव के दोनों और
पंक्तिबद्ध मकान
कितने बड़े कोठे, कितने चिकने
कितने छपरीले
एपीएल को छपरा घर
बीपीएल को छत, अन्ना हो ।
हमारी गांव में खोली है अभी
एक आँगन-बाड़ी
थाली-कटोरा लेकर बच्चे
बैठे धाड़ी-धाड़ी 
परोसे जाते
मोटे चावल भात
 हमारे गांव के वार्ड मैंबर
गांव काम के वे ठेकेदार
वार्धक्य भत्ता देने के लिए
बुजुर्गों से रिश्वत मांगते
हमारे गांव के सरपंच, अन्ना हो .....
गांव मुहाने रथिया साहू का
कच्चा घर
यहाँ बिकता वरा घुघुनी
पान,सफल,चाय
इशारा करने पर मिलती देशी-विदेशी
चखना हो तो चखो, अन्ना हो ।
 हमारे गांव के खेतों में
दो फसलों की बुवाई
लोगों के बढ्ने से घर बढ़े
जमीन हो गई कम
दो रुपए के चावल के लिए
कौन करेगा खेती, अन्ना हो ।
दुर्नीति अगर देखेगा कोई
आओ हमारे गांव
हमारी गांव की सौंधी मिट्टी में
लिखा हुआ है नाम
खटुली खा जाती भगवान यहाँ
बाढ़ खा जाते खेत, अन्ना हो ।

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