37 - अशुभ घड़ी / मूल ;- कृष्ण मोहन चांद


37 - अशुभ घड़ी
मूल ;- कृष्ण मोहन चांद
किस अशुभ घड़ी में जन्म लिया मैंने
जन्म लेते ही अनवरत अभिशाप की वर्षा
चेहरा छुपाकर सिसकती मेरी जननी
किसी एक अंधेरे निर्जन कोने में
रुद्ध गले अस्फुरित भाषा ।
  इच्छा थी पुत्र के रूप में जन्म लेती मैं
कितनी पूजा-पाठ, कितने व्रत, कितने उपवास
कितने देवी-देवता, अतिथि-पूजन
कितने साधुओं को दान या ज्योतिष-गणना
तीन कन्याओं के बाद पुत्र
 सोनोग्राफी होने पर मगर परिणाम उल्टा।
लूट गईं जननी के नयनों से
अविश्रांत वारी
थपथप गिरते छाती पर मेरे
गंदी-गंदी टिप्पणियाँ माँ पर मेरे
पत्थर-मूरत बन सब-कुछ भूल
निर्विकार भाव से गिरते अश्रु झर-झर ।
  ज़ोर-ज़ोर से रोने में लग रहा था डर
पिता के भीम-गर्जन के भय से
चुपचाप खोज रही थी
यह संसार कितना अपना, कितना पराया ।

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