32-उदास सुबह / निर्मल कुमार मिश्रा


32-उदास सुबह
                                       - निर्मल कुमार मिश्रा
रंगीन सुबह उदास-उदास लग रही है
गत रात खो कर संबंध
याद आ रही है अधिक
क्या ऐसा हो गया, सच में ?
आकाश में उड़ती चिड़िया
बगीचे में खिलते फूल
बहती शीतल पवन
हर दिन की तरह भोर में
चल रहें लोग राज-रास्ते
इस तरफ से उस तरफ
हाथ में टेढ़े बांस पकड़कर
बाउंड्री के बाहर झूलती डाल से
फूल सब तोड़ते साहब लोग
शहर का आलस्य तोड़ते निज अभ्यास में ।
किवाड़ खोलते-खोलते अखबार
गिर जाते दरवाजे के सामने
दूध वाला दूध देते रास्ते में आवाज सुनाई पड़ती
मूढ़ी और पावरोटी,सच में शहर जैसे
जाग गया हो घोर नींद से ।
चौक के पास चाय की दुकान से
ठनठन सुनाई देती कप और केतली
कांटी लगे टूटे बेंच पर बैठे
बीड़ी फूँक रहे रिक्शावाले
आर्डर देते केवल
एक चाय का ।
म्युनिसिपालीटी के स्वास्थ्य कर्मी
हाथ रिक्शा पकड़कर निकल पड़े हैं
गंदगी को साफ करने सीमेंट रास्ता पर ।
शहर की नींद टूटती
रात का अंधेरा हटता  
लाल सूरज रुपामत हो उगता  
गुलाबी चकमक धूप में
नदी के पानी में मछ्ली की त्वचा चमकती
आकाश चमक उठता है सूर्य की छटा से ।
मंदिर से घंटी की आवाज सुनाई पड़ती
मस्जिद से धीरे-धीरे नमाज सुनाई देने लगती नमाज
पास के स्टेशन से सुनाई देता
दूरगामी ट्रेन की बिगुल ।
शहर एकांत अपना
सुबह अधिक आत्मीय
यह फूल,यह पेड़ का
आकाश घर सब अपने  
सभी यहाँ यांत्रिक होते हैं
मन और मनुष्य कठोर होते हैं
प्रताड़ना अभाव में ।
ग्रेनेड से जीप उड़ जाती है
वात्या में पत्तों की तरह
पुराने घर से छत उड़ जाने की तरह
पड़ जाते हैं जवान
निरीह जीवन नष्ट होते हैं
अकाल से और अकारण से
कल मेले की रास्ते
आज सुबह ।
सुबह उदास-उदास लगती है
यंत्रणा सब जीवन होने की भय से
मनुष्य आशंका में सिकुड़ जाता है
सभी के भीतर निस्व बन जाती है ।

Comments

Popular posts from this blog

49॰ अग्नि-कन्या / शुभश्री मिश्रा

48 – अनावृत्त-अंधकार / मूल :- निबासीनि साहु

47 – भूत-बीमारी / मूल:- महेश्वर साहु