3-मेरा शहर / प्रशांत रथ
3-मेरा शहर
प्रशांत रथ
यह
शहर
मेरा
शहर तालचेर
एक अदम्य शक्ति-स्थल
जहां श्वान भागे दुम
दबाकर
जब सामने आया शशक दल
ब्राह्मणी के सुरम्य
तट का पूजा-स्थल
‘तालेश्वरी’ के नाम पर नाम पड़ा
तालचेर ।
अनेक
राजाओं के
आक्रमण, पराक्रम
लूटपाट, बलात्कारों
का
यह प्रत्यक्षदर्शी ।
पराधीनता
शोषण,प्रदूषण
धर्षण
का मूक-साक्षी
अभाव, अनाटन
सुदिन दुर्दिनों के
मन की बंद कोठरी की
यादों का निस्तब्ध
निर्वाक अक्ष
उसी अक्ष के कक्ष पर
विराजमान
मेरा शहर तालचेर ।
राजा-महाराजा
शासक-शोषक
आए-गए
अपनी रक्ताक्त आंखों से
तरंगित कर
ब्राह्मणी
का जल ।
जिसे देख नेत्र हुए
सजल
करने को करता मन
बारंबार जुहार
यही मेरा तालचेर ।
आज
भी कुछ नेता
बाबू,लेखक सृजन करते है
तालचेर
की पुरातन गौरव गाथाओं का
अपनी कलम के मून से ।
यहां जल-थल-गगन
सबसे
ऊपर पवन
खनिज-खनन
कारखानों
का
अखंड
उपवन
‘रेकुना’ रथ
की तरह
नहीं होता छोड़ने का
मन
जिसका हो इतिहास अमर
यही मेरा तालचेर ।
सदियों
से
गुणी
लोगों को सम्मानित करता
अत्याचारियों
को
दंडित
करता है
मेरा शहर ।
मेरे
शहर की आत्मा
कभी
नहीं हुई है
किसी
की क्रीत-दास
बेवस और उदास ।
शर्तहीन
प्यार करने वालों
मनुष्यों
को वह
हमेशा
से अपनाता आया ।
जाति-धर्म-वर्ण विशेष में
किसी को कभी भी
किसी को कभी भी
नहीं सोचा अपना-पराया।
राजा, प्रजा, संग्रामी
कारीगर,कलाकार
सभी के लिए वही अपनापन ।
इसी लिए तो सदा लगा
यहां मेरा मन
इस धरणी पर
क्यों की यह मेरा तालचेर ।
किसी भी कुचक्री,हृदयहीन
दलालों
के
याद
नहीं रखता नाम ।
काली धूल,काले धुएँ
के घेरे
में
अनेक
सालों से
हृदयता
की सफ़ेद चमक लिए
ब्राह्मणी
नदी के तट की
रेतीली शय्या
पर
अनंत शयन
मुद्रा में
निश्चिंतता
में सोया है
मेरा सुंदर शहर
मेरा शहर तालचेर
मेरा शहर तालचेर ।
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