27-कैसे सह रहे हो,कहो / -मोंटू चरण साहू
27-कैसे सह रहे हो,कहो
-मोंटू
चरण साहू
स्वाधीनता हमारी गई बीत
आज चौसठ साल
उपांत अंचल ढूंढ रही
आज
पाने थोड़ी खुशी ।
मौलिक सुविधा दुरूह
व्यापार
नहीं जानते उन्हें
कोई
गर्भवती लेकर गांव
के भैया लोग
खटिया ले ढोते हैं ।
आदिवासी नीति सात-सपनों की तरह
दिन में अंधेरा
दिखता है
रोग-व्याधि होने पर नवजात बच्चें
मिट्टी में मिल जाते
हैं ।
सहन नहीं हो पा रही
है भूख-ज्वाला यहाँ
माँ बेच रही है
बच्चे
हर तरफ अंधेरा दिख
रहा
ढूंढ रही थोड़ी राह ।
महानगर में धनी गरीब
का
छाती में भर रहा कोह
दुर्गम अंचल में
उसका एक भाई
कैसे जी रहा है, कहो ?
होते आज अगर हमारे
गांधीजी,गोपबंधु
सह पाते क्या वे
उसकी संतान तुम ही
तो हो
कैसे सहते हो, कहो ।
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