25-‘मनेपकाअ’ संस्था के नाम / धीरा दास
25-‘मनेपकाअ’ संस्था के नाम
धीरा दास
याद करो लेखनी के मून से
मन की भावना प्रभावित कर एक दिन
ढूंढ रहा था आसरा
जिसने की तुम्हारी सहायता,
चिर नमन ‘मने-पकाअ”
जहां हम आज खड़े हैं ।
तेरे राज्य के कवि लेखक
ज्ञानी,पंडित,गुणी,साधक
विक्षिप्त होकर कौन कैसे थे
जिन्होंने दिया उनको नाम
चिर नमन ‘मने पकाउ’ तुम्हारे सामने आज खड़े ।
आए सुधि साधनाश्रयी
रचे गाथा राज्य के लिए
बैठे यहाँ एकत्र होकर
पकड़े कविता की नाव
चिर नमन ‘मने पकाअ’
तुम्हारे सामने आज खड़े ।
उठे जहां से कवि के स्वर
राज्य के प्रति भले-बुरे विचार
कविता जहां झंकृत हुई
बिना तोड़े वीणा की राह
चीर नमन ‘मने पकाअ',
जो तुम्हारे सामने आज खड़े ।
वृत्ति में जो जितने भी
ऊंचे
संभालकर रखे एक मंच
धनी दरिद्र
जहां एक समान
चिर नमन ‘मने पकाअ’
तुम्हारे सामने आज खड़े ।
हमारे गर्व-गौरव की
प्रतीक रूप उठाकर सिर
यह संस्था सृष्टिकर्ता की
चरण में मिलती राह
चिर नमन ‘मने पकाअ’
तुम्हारे सामने आज खड़े ।
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