24-कोटा नहीं है जन्मगत अधिकार / नरेश चन्द्र पाणी
24-कोटा नहीं है जन्मगत अधिकार
नरेश चन्द्र पाणी
थोड़ा खाकर,थोड़ा जीकर
थोड़ा पहनकर मैंने
पढ़ाई की
सभी परीक्षा में
प्रथम भी हुआ,
मेधावी छात्र का
मुकुट पहनने से पहले
सभी प्रतियोगिता से
मूल्यहीन पुरस्कार
पाने पर भी
दारिद्रय की ताड़ना
से जर्जरित
मेरे जीवन के लिए,
सरकारी सहायता तो
कुछ भी नहीं मिली ।
समाज में सिर ऊंचा
करके खड़े होने के लिए
साधारण नागरिक के
न्याय-हक पाने की आशा में
परीक्षा के बाद
परीक्षा
उसके बाद
साक्षात्कार
कितने गए
उसका हिसाब नहीं है
अब
निराशा और हताशा की
छाया
पीछा कर रही है मेरी, मुझे नहीं छोड़ रही
है,
पेट पालने के लिए
मेरा सहारा भी नहीं है ।
निस्सहाय विकल जीवन
क्यों की में एक
ब्राह्मण संतान ।
और वह ...
परीक्षा में पढ़ कर
पास करते-करते
जल्दी नौकरी पा गया
क्योंकि
नौकरी उसके इंतजार
में थी ।
पापा उसके धनी और
मानी
प्राचुर्य में शीर्ष
स्थान
फिर भी वह
शासक के दृष्टि में
आज
बड़ा हीन-मान
और विलासी जीवन
पाने का उसका पूर्ण
अधिकार
कारण वह
सरकारी ब्राह्मण
नन्दन ।
वंशगत आज यह अधिकार ‘कोटा’
किसके सिर पर सोने
का कलश तो
और उसके लिए किसकी
फूटी किस्मत ।
जरूरत नहीं आज
इस
छदम गणतन्त्र
और झूठा स्वाधीनता की
जाति के नाम से
विचार जहां ‘मेधावी’
सृष्टि हो नूतन
विधान
धूमिल होती वोट
राजनीति
समाज में गौरव पाएँ
सम्मान
कवलित ‘स्वराज’हमारा
भ्रष्टाचारियों से छीन लेंगे
हमारा न्याय अधिकार
।
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