23 - भक्त की पुकार / विनय कुमार पाणी


23 - भक्त की पुकार
  विनय कुमार पाणी
हे ईश्वर !
ऐसे कितने दिनों तक अपलक नयनों से देखते रहोगे ?
कब उनको दंड दोगे ?
लगता है, आपको अच्छा लगता है यह संसार ।
इसलिए बीचबीच में अनियंत्रित हो जाते हो
तुम तो सजल निगाहों से देखते हो
सब जानकर न जानने की तरह हो रहे हो
परोक्ष से उनको समर्थन कर रहे हो
सभी को दर्शन देने के लिए
बड़ दांड में यात्रा कर रहे हो
फिर भी ऐसे अघटन क्यों घटा रहे हो ?
सभी को दर्शन देने के लिए बाहर आ रहे हो
पैसा लेकर दर्शन दे रहे हो
फिर भी भक्त को लहू लुहान कर रहे हो ।
हे कालिया ठाकुर !
भक्त गोरे है, इसलिए ईर्ष्या कर रहे हो ?
माँ सांतानीके सामने
शपथ की थी इसलिए
लगता है आप भूल गए हो ।

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