22-भारत एक मनुष्य का नाम / - ॐ साई दत्ता
22-भारत एक मनुष्य का नाम
- ॐ साई दत्ता
तू जवाब दे या न दे
फिर भी मैं पूछती
केवल एक प्रश्न ?
हे मनुष्य एकबार देख
खुद
तू आज मनुष्यत्वहीन
एक खाली आवाज
तुम्हारी मनुष्यता
आज
नीलाम हो प्रति
मुहूर्त,
तू जैसे बदल गया
हिंसा,द्वेष,घृणा
और व्यभिचार से
परिपूर्ण,
एक नीरव,निस्पंद, प्रतिक्रियाहीन
रक्त-मांस की गुड़िया में ।
तुम्हें जैसे चाहो
नचा सकते हे,
कभी माओवादी
मुखौटा पहनकर धर्षण
कर रहे गणतन्त्र का,
और कभी संत्रास की हाई देकर
तुम संहार करते जा
रहे हो
सरल,निष्कपट,स्वाधीनता को ।
किसलिए तुम्हारा यह
विचित्र रूप ?
तू जवाब दे या न दे
फिर भी मैं पूछती केवल एक प्रश्न
हे अविवेकी मनुष्य
अन्य के विनाश को
देखने से
तुम्हें कष्ट नहीं
होता है ?
अन्य के आँसू देखने
से
तेरे आँखों से आँसू
नहीं झरते है !
सच में जैसे
तू प्राणहीन, एक
निस्तरंग समुद्र ।
कुछ समझ में नहीं
आता है, किसलिए तुम्हारा ये मिथ्या अभिनय ?
तू जवाब दे या न दे,
फिर भी मैं पूछती केवल एक प्रश्न
क्या तुम गांधीजी के
संतान नहीं हो ?
सुभाष जी के
प्रतिबिंब नहीं हो, ?
तेरे शिरा-धमनियों में क्या प्रवाहित नहीं हो रही है
इस गांव की मिट्टी
की मह-मह सुगंध,
सच, बताओ मनुष्य ?
तुम्हें क्या उद्वेलित नहीं
कर रहा है
आधा टूटे,आधा गढ़ा
अधूरे सपनों का भारत ?
तू जवाब दे .....
न अब तुझे
जवाब देना पड़ेगा
मनुष्य ।
तुझे मानना पड़ेगा
प्रेम का नाम भारत
प्रत्यय का नाम भारत
स्नेह का नाम भारत
विश्वास का नाम भारत
इन सभी गुणों की
समाहार से सृष्टि
तुम्हारी तरह मनुष्य
का नाम भारत ।
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