21- शहीद की गीता / -ॐ वाग्मयी कविकन्या


21- शहीद की गीता
  -ॐ वाग्मयी कविकन्या  
हिमालय से कन्या कुमारी तक
गंगा से गोदावरी तक
व्याप्त मेरी माँ का तिरंगा आँचल
यहाँ जीने के लिए करना होगा
मरने का व्रत ।
जहां मनुष्य के ताजे रक्त के ऊपर
सोया हुआ है कंकाल
जहां यौवन के उधामता से
तारुण्य हुआ है संत्रास
कर सकते हो देश प्रेमी भारतीय मेरे,
जननी के भाग्य-रेखा खींचने वाले
इस देश के वीर ।
मृत्यु के लिए डर नहीं,
हर समय नहीं मिलता है
देने के लिए इस मिट्टी को शहीद का रक्त ।
यहाँ ताज में क्षत,ताजमहल में क्षत
क्षताक्त गंगा माँ
बारूद की महावात्या,हिला देते
इस देश के नाविक और नाव ।
कर सकते हो तो निकाल कर फेंक दो
नौका का पाल
नहीं तो बदल दो ,तूफान के मोड़,
आँधी हो या हो तूफान
खोजना होगा एक बार प्रश्न की उत्तर
जिंदा हो जाओ,और एक बार मत हो
असहाय मरुत ।
आज पहाड़ कर रहा युद्ध का इशारा
पानी मांग रहा है रक्त,
जला दो सभी झूठ शहद मिली कथा
और हृदयहीन शब्दों में गढ़े
देश-भक्ति के नारे 
जब भी माँ की आँचल में लगती आग
बाजार में नीलाम होती इज्जत
कब और टूटेंगी नींद,
कितने दिनों तक और सो-सोकर
गाते रहेंगे झूठ-मूठ देश भक्ति के गाने ।
संकट हमारा दर्शन,
उसको आलिंगन करो
संत्रास हो या संत्रासी
आओ, मिलकर उठाते है विपद का बोझ
हटाएँगे कलंक के काले बादल ।
भीरु की तरह भाग्यवादी मत बनो
कब और कहाँ मारे हैं
कर्मठ जवान,किसान
जहां वीर की तरह हुंकारें  
भूखे भारतीय प्रेत ।

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