20-स्मृति / -कल्पना बोईती


                                20-स्मृति
                                                          -कल्पना बोईती
स्मृति वह तो बड़ी नासमझ
बड़ी जिद्दी,कुछ भी नहीं समझती है
चुपचाप चली आती है
समग्र  पवन की तरह
फिर चली जाती है,
कुछ स्मृतियाँ, कुछ अनुभूतियाँ
मंथन करती है हृदय-कंद में
गांव के मुहाने, आम के बगीचे में
कुमार पूर्णिमा का चंद्रमा
सावन की रिमझिम बरसात
बसंत के कुह-कुह तान
हृदय को करती है अनमना ।
कभी हँसाती
कभी आँख भर जाती आँसू में
कुछ स्मृति रह जाती है
चिरकाल मानस पटल पर ।

Comments

Popular posts from this blog

49॰ अग्नि-कन्या / शुभश्री मिश्रा

47 – भूत-बीमारी / मूल:- महेश्वर साहु

48 – अनावृत्त-अंधकार / मूल :- निबासीनि साहु