19-नील-कुमुद - रत्नप्रभा बाई


19-नील-कुमुद
 - रत्नप्रभा बाई  
मत मांगो मत मांगो इसे मधुकर ज्योत्स्ना
अभिमानी नील कुमुद समझो एकबार मेरी वेदना
समझो एक बार मेरी वेदना
ना समझ मत हो ।
मेघ की दीवार को कूद कर छू नहीं सकता तुमको
चलते बादलों की फांक से आतुर होकर देखते
कितनी आशा, कितने अनुराग,कितने मिलन के रंग
मन के अंदर तरंग उठती है
फिर भी नहीं कह सकता हूँ
अभिमानी नील-कुमुद, समझो एक बार मेरी वेदना
पंखुड़ी खोलते ही सुगंधित मदिरा की तरह
आधी हंसी से घाव नहीं भरते
अधखुले देह विरह की सारी वर्णमाला
उम्र की खुशबू और
इस रात्रि-लेखन मे
अभिमानी नील-कुमुद, समझो एक बार मेरी वेदना ।

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