1- सुनसान रात में/अरुण शंकर मिश्र
1- सुनसान रात में
अरुण शंकर मिश्र
तुमने कहा था
सुनसान रात में
एक अबला
बिना किसी भय के
जब किसी रास्ते से
गुजर सकती है
उस दिन लगेगा
इस आर्यावर्त ने
स्वाधीनता का स्वाद चखा
है ।
कौन जानता था
यमुना का जल
उफनकर बहेगा आज
कौन जानता था
सुहानी दिल्ली
घटना-क्रम में
टूट पड़ेगी आज
।
घोर कलियुग
कालापन लिए
नींद में सोया हुआ
है समाज,
कौन जानता था
दिल्ली के रास्तों
में
जल्लादों द्वारा
हृदय-विदारक मौत ।
सोचा नहीं था एक बार
भी
मनुष्य के कुल में
जन्म लेकर
पशुओं से भयंकर
सोचा नहीं था एक बार
निरीह ललना
तुम्हारी वासना में
कुचली गई ।
आसुरी-प्रवृत्ति तुम्हारी
काम-वासना
व कर्म तुम्हारे
बंधनों में फंसे
इस
जघन्य-कर्म के
लिए
गिनते रहोगे फांसी के दिन
तुम्हारे लिए आज
समाज लज्जित
तुम्हारे लिए आज
ये देश-विव्रत ।
आशाराम तुमने
भी किया निराश
तुम्हारे बयानों की
हुई लोक हंसी ।
है देश परेशान
तुम्हारे बयान से
अपवाद जीतने
गूँजता है कानों में
।
हिमालय से
कन्या-कुमारी तक
बम-विस्फोट ने
थर्रा दिया देश को ।
सोचने का समय नहीं
देश की मंगल कामना
करने वालों
हो जाओ तैयार
दुशासन वध के लिए ।
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