42 – हम सौ करोड़ पार कर गए / मूल :- उमेश चन्द्र खूंटिआ
42 – हम सौ करोड़ पार कर गए
मूल :- उमेश चन्द्र खूंटिआ
चौसठ सालों आजाद हम मनुष्य
अति आधुनिक नारी
पुरुष
हजारों सालों से
लाखों युद्ध लड़ते हुए
सभ्य बने है ।
यहाँ अष्टप्रहरी हर दिन
फिर भी अभी तक आदत
नहीं
त्वचा तले यंत्रणा
मगर त्वचा चमड़ी नहीं
बन पाई ।
हमारी जाति,धर्म,देश
धन,ज्ञान,स्वाभिमान सबकुछ है
नहीं है तो केवल
मनुष्यता
अब,वह भी आवश्यक नहीं है ।
आगे मनुष्य नंगे थे
ठीक गड्डे
में रहते भालू की तरह
पहाड़ की गुफाओं में
थे
आघात होने पर, पत्थर फेंकते थे
अब हमारे कमरों का
शीतताप
कोठरी के बाहर
आतंकवादी बम
मण्डल,गोधरा,नंदीग्राम,कलिंग नगर
और सेंसेक्स हाथ में
शासक जब जब शोषक हो
जाते हैं
सभी मिस इंडिया का
मदर टेरेसा बनने का सपना
हमारे देश की सेवा
नहीं,पाने में धुरंधर
तथाकथित नेतृत्व
महात्माओं का होने का सपना
आज जो कुछ ताकत है
अपनी दुर्बलता
यहाँ है शासन
मगर नहीं अनुशासन
हमारे लो एंड ऑर्डर
रेप और मर्डर में
परिवर्तित ।
नंगा होना यहाँ की फैशन
इन्टरनेट पर छवि
विश्व को एक परिवार
बनाकर
शांति और भाई चारा
के लिए
सेना और आतंकवादी
पालते हैं ।
Comments
Post a Comment