35 - मिला-जुला अनुभव / मूल - लतिका महापात्र
35 - मिला-जुला अनुभव
मूल - लतिका महापात्र
पता नहीं,
कितने नामों के
अंजान रंगों में विभोर चित्रपट जीवन
अनुभव के गरम झोंके
से झुलसते अस्थिपंजर
समझने के बाद भी
समझाया नहीं जा सकता जीवन
सौ-सौ प्रयासों के बाद भी ।
मैं चुपचाप नीरव
अनुभव कर रहा था
आवेग और आघातों के
प्रहार ।
सोचने की बात नहीं, सोचकर
सोचे बिना नहीं रहा
जाता
भाव के उफनती बाढ़ को
बांध बनाकर रोका
नहीं जा सकता ।
जीवन एक संज्ञाहीन
सत्य
पारस्परिक संबन्धों
में
उलझा एक अद्भुत
अनन्य जाल ।
क्या इतना सहज सभी
के लिए
मुक्त होना ?
बहुत सहज है क्या
संन्यास,निर्वाण
प्रवज्या अथवा मोक्ष ?
यहां तो हर
मुहूर्त्त में
मैं लथ-पथ
लाभ और लोभ के पंक
में ।
हर मुहूर्त्त में
मैं उड़ता रहती हूं
आकाश को छूने के नशे
में ।
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